Saturday, 3 April 2021

कोई अक्स देखता है अक़्सर अपना,इन आंसुओं में मेरी ; कुछ देर आँखों को मेरी ,मुसलसल यूं ही नम रहने दो !!

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...मैंने कभी चाहत ना की ज़माने की ;
एक आरज़ू तुम पर ख़त्म हो गयी !!



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कोई अक्स देखता है अक़्सर अपना,इन आंसुओं में मेरी ;
कुछ देर आँखों को मेरी ,मुसलसल यूं ही नम रहने दो !!

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